राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह 1979 से अब तक नियुक्त किए गए उन कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करे जिनकी नियुक्तियां प्रारंभ में अनियमित या अवैध रही थीं, लेकिन जिन्होंने वर्षों तक लगातार सेवा दी है।
न्यायमूर्ति अरुण मोंगा ने यह स्पष्ट किया कि इतने लंबे समय तक की गई निरंतर सेवा, भले ही नियुक्ति प्रक्रिया में खामियां रही हों, कानूनी मान्यता की हकदार है। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे कर्मचारियों को उनके अधिकारों से वंचित करना “संस्थागत शोषण” के बराबर है, जो कि एक कल्याणकारी राज्य में अस्वीकार्य है।
“ऐसी नियुक्तियां जो स्वरूप में अनियमित हों लेकिन सामग्री में वैध हों, और जो स्वीकृत पदों पर लंबे समय तक सेवा दे चुकी हों, उन्हें मात्र प्रक्रिया की खामी के कारण नहीं छोड़ा जाना चाहिए,” कोर्ट ने कहा।
पृष्ठभूमि
यह मामला कई याचिकाओं से जुड़ा था, जिनमें वर्ग III और वर्ग IV के कर्मचारी शामिल थे। इन्हें विभिन्न सरकारी पदों पर नियुक्त किया गया था, कुछ को तो 1979 में ही रखा गया था। लेकिन दशकों तक सेवा देने के बाद भी इनकी सेवाएं कभी नियमित नहीं की गईं। ये नियुक्तियां सामान्य भर्ती प्रक्रिया के बिना की गई थीं, इस कारण इन्हें अनियमित या अवैध माना गया।
सुप्रीम कोर्ट ने सचिव, कर्नाटक राज्य बनाम उमा देवी (2006) मामले में कहा था कि जिन अनियमित कर्मचारियों ने कम से कम 10 साल की सेवा दी है, उन्हें 6 महीने के भीतर एक बार के विशेष उपाय के तहत नियमित किया जाए। लेकिन राजस्थान सरकार ने इस आदेश को 2009 तक लागू नहीं किया, फिर भी पात्रता की गणना के लिए कट-ऑफ तिथि 2006 तय कर दी, जिससे कई कर्मचारी बाहर हो गए।
हाईकोर्ट ने कहा:
“08.07.2009 तक नियमों को अधिसूचित करने में हुई देरी पूरी तरह राज्य सरकार की गलती थी। फिर भी, 10.04.2006 की पिछली तारीख को कट-ऑफ तय कर देना, पात्र कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाना है।”
कोर्ट द्वारा दिए गए मुख्य निर्देश
इस फैसले में कोर्ट ने सभी प्रभावित कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए कई निर्देश जारी किए:
1. पात्र कर्मचारियों का नियमितीकरण
जिन याचिकाकर्ताओं की नियुक्तियां अनियमित थीं लेकिन अवैध नहीं थीं, और जिन्होंने 2009 तक 10 साल की सेवा पूरी कर ली थी, उन्हें नियमित किया जाए। साथ ही, सभी संबंधित सेवा लाभ भी प्रदान किए जाएं।
2. भविष्य की नियुक्तियां और रिक्तियां
राज्य सरकार को स्वीकृत रिक्त पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू करनी होगी। पात्र याचिकाकर्ताओं और इसी स्थिति में अन्य व्यक्तियों को:
- खुली चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी जाए;
- आयु में छूट दी जाए;
- राजस्थान संविदा नागरिक पदों की नियुक्ति नियमावली, 2022 के नियम 20(2) के अनुसार पूर्व सेवा के लिए वेटेज (अंक) दिया जाए।
3. 10 साल से कम सेवा वाले कर्मचारी
जिन याचिकाकर्ताओं ने 10 साल की सेवा पूरी नहीं की है लेकिन नियुक्ति अनियमित थी, उन्हें भी:
- सेवा वेटेज;
- आयु में छूट;
- उमा देवी मामले के अंतर्गत समान लाभ प्रदान किए जाएं।
4. अवैध नियुक्ति वाले कर्मचारी
जिनकी नियुक्तियां अवैध थीं, उनके लिए:
- उन्हें नियमित भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने दिया जाए;
- नियम 20(2) के अनुसार आयु छूट और अनुभव वेटेज दिया जाए;
- उन्हें व्यक्तिगत "स्पीकिंग ऑर्डर" जारी कर उनकी स्थिति और पात्रता की जानकारी दी जाए।
5. निगरानी समिति का गठन
मुख्य सचिव को एक निगरानी समिति का गठन करना होगा, जो इस आदेश की अनुपालना सुनिश्चित करेगी और हर तिमाही स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
6. पारदर्शिता
राज्य सरकार को नियमित किए गए कर्मचारियों की सूची और अनुपालना रिपोर्ट अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करनी होगी।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यह आदेश इन रेम यानी सभी समान स्थिति वाले व्यक्तियों पर भी लागू होगा। इस प्रकार, सभी याचिकाओं का निपटारा कर दिया गया।
“एक कल्याणकारी राज्य को संवैधानिक नैतिकता का पालन करना चाहिए और मात्र प्रक्रिया की त्रुटियों के कारण न्याय से वंचित नहीं करना चाहिए,” कोर्ट ने कहा।
शीर्षक: गिरिराज प्रसाद शर्मा बनाम राजस्थान राज्य, तथा अन्य संबंधित मामले