इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एक बार जब ट्रांजिट में माल का भौतिक सत्यापन हो जाए और वह चालानों के अनुसार पाया जाए—जैसा कि MOV-04 फॉर्म में दर्ज है—तो कर अधिकारी बाद में अपना रुख नहीं बदल सकते या ऐसे आपत्तियाँ नहीं उठा सकते जो मूल रूप से दर्ज नहीं की गई थीं।
न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने M/S मां कामाख्या ट्रेडर द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए कहा:
"एक बार जब सत्यापन रिपोर्ट यानी MOV-04 में वस्तुएं संबंधित अधिकारी द्वारा जांच के बाद दर्ज कर दी जाती हैं, तो अधिकारियों को अपना रुख पूरी तरह बदलने या ऐसे अलग-अलग कारणों या आधारों को जोड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो MOV-04 रिपोर्ट तैयार करते समय नहीं लिए गए या उल्लेखित नहीं थे।”
मामला क्या था?
याचिकाकर्ता M/S मां कामाख्या ट्रेडर ने 10.11.2023 को पारित अपीलीय आदेश को चुनौती दी, जिसमें जीएसटी के अंतर्गत ट्रांजिट में माल पर लगाए गए जुर्माने को बरकरार रखा गया। यह माल गुवाहाटी (असम) से दिल्ली ले जाया जा रहा था और 21.09.2023 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में रोका गया।
रोक के समय, सभी आवश्यक दस्तावेज जैसे टैक्स चालान, ई-चालान, ई-वे बिल और बिल्टी (जीआर) प्रस्तुत किए गए थे। वाहन चालक का बयान MOV-01 में दर्ज किया गया, जिसमें कोई विसंगति नहीं पाई गई। बाद में, MOV-04—भौतिक सत्यापन रिपोर्ट—जारी की गई, जिसमें स्पष्ट रूप से दर्ज था कि दस्तावेजों और वस्तुओं में कोई अंतर नहीं था।
इसके बावजूद, बाद में यह कहते हुए जुर्माना लगाया गया कि माल में विसंगति थी। विभाग ने तर्क दिया कि चूंकि HSN कोड दर्ज किया गया था, इसलिए MOV-04 में वस्तुओं की सूची अपने आप भर गई और वह सही सत्यापन को दर्शा नहीं सकती। लेकिन जब अदालत ने पूछा कि क्या वस्तुओं का विवरण मैन्युअल रूप से दर्ज किया गया था या ऑटो-फिल हुआ था, तो राज्य के वकील ने स्वीकार किया:
“माल को मैन्युअल रूप से दर्ज करना होता है।”
यह तर्क विभाग के ही दावे का खंडन करता है और उनकी बात को कमजोर करता है।
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने MOV-04 के उद्देश्य को स्पष्ट किया:
"MOV-04 भरने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि ट्रांजिट में माल साथ दिए गए दस्तावेजों के अनुसार है या नहीं… यदि अधिकारी को उस समय कोई अंतर नहीं मिला, तो बाद में अलग रुख अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
अदालत ने जितेन्द्र कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले का हवाला भी दिया, जिसमें कहा गया था:
“यह कानून की स्थापित स्थिति है कि राजस्व विभाग बार-बार अपने रुख को नहीं बदल सकता… माल को रोकने से करदाता को गंभीर नुकसान होता है और ऐसा केवल ठोस, वैध और उचित आधार पर ही किया जा सकता है।”
अदालत ने पाया कि विभाग का जुर्माना आदेश कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है और इसे रद्द कर दिया। साथ ही, अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा मुकदमे के दौरान जमा की गई राशि तीन सप्ताह के भीतर लौटा दी जाए, जब वह आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करें।
केस का शीर्षक: मेसर्स मां कामाख्या ट्रेडर बनाम एडिशनल कमिश्नर ग्रेड 2 और अन्य [रिट टैक्स संख्या - 1386/2023]