दिल्ली हाईकोर्ट ने भारती एयरटेल लिमिटेड के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विदेशी टेलीकॉम प्रदाताओं को बैंडविड्थ सेवाओं के लिए किया गया भुगतान इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 9(1)(vi) के तहत "रॉयल्टी" की श्रेणी में नहीं आता।
यह मामला 28.03.2017 को असेसिंग ऑफिसर (AO) द्वारा पारित आदेश से शुरू हुआ, जिसमें एयरटेल को धारा 201(1), 201(1A), और 195 के तहत डिफॉल्टर माना गया। AO का तर्क था कि एयरटेल को विदेशी कंपनियों को की गई बैंडविड्थ सेवाओं, वार्षिक अनुरक्षण शुल्क और अन्य शुल्कों पर टीडीएस काटना चाहिए था क्योंकि ये भुगतान तकनीकी सेवाओं (FTS) या रॉयल्टी के अंतर्गत आते हैं।
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आयुक्त आयकर (अपील) [CIT(A)] ने एयरटेल की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया। उन्होंने यह माना कि कुछ विदेशी भुगतान भारत में कर योग्य नहीं हैं और इसलिए टीडीएस नहीं काटा जाना चाहिए था। हालांकि, उन्होंने यह अस्वीकार कर दिया कि बैंडविड्थ चार्ज भी करमुक्त हैं और उन्हें रॉयल्टी की श्रेणी में रखा।
इसके बाद, एयरटेल और आयकर विभाग दोनों ने ITAT (आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण) में इस निर्णय को चुनौती दी। विभाग AO के आदेश को रद्द किए जाने से असंतुष्ट था, जबकि एयरटेल ने बैंडविड्थ चार्ज को लेकर अपना पक्ष दोहराया।
ITAT ने एयरटेल के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि विदेशी टेलीकॉम कंपनियों को बैंडविड्थ सेवाओं के लिए किया गया भुगतान इनकम टैक्स एक्ट की धारा 9(1)(vi) के तहत "रॉयल्टी" नहीं माना जा सकता। इसके बाद विभाग ने इनकम टैक्स एक्ट की धारा 260A के तहत हाईकोर्ट में अपील की।
राजस्व विभाग का मुख्य तर्क यह था कि फाइनेंस एक्ट, 2012 द्वारा "प्रोसेस" की परिभाषा शामिल किए जाने के बावजूद बैंडविड्थ सेवाओं का भुगतान रॉयल्टी नहीं माना जा सकता। उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया कि क्या डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) की लाभदायक शर्तें घरेलू टैक्स कानून में किए गए रेट्रोस्पेक्टिव संशोधनों पर हावी हो सकती हैं।
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“क्या बैंडविड्थ सेवाओं का भुगतान इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 9(1)(vi) के तहत 'रॉयल्टी' नहीं माना जा सकता, जबकि 'प्रोसेस' की स्पष्ट परिभाषा मौजूद है...” – राजस्व विभाग की दलील
हालांकि, न्यायमूर्ति विभु बखरु और न्यायमूर्ति तेजस कारिया की पीठ ने इस अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह माना कि यह मामला पहले ही कई निर्णयों द्वारा सुलझाया जा चुका है, जिनमें New Skies Satellite BV (2016) और CIT v. Telstra Singapore Pte. Ltd. (2024) शामिल हैं।
“विदेशी टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं को बैंडविड्थ के लिए किया गया भुगतान इनकम टैक्स एक्ट की धारा 9(1)(vi) के अंतर्गत रॉयल्टी नहीं माना जा सकता।” – दिल्ली हाईकोर्ट
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में विचारणीय कोई गंभीर विधिक प्रश्न उत्पन्न नहीं होता और अपील को खारिज कर दिया गया।
“उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए, इस न्यायालय के विचारार्थ कोई ठोस विधिक प्रश्न उत्पन्न नहीं होता। अतः अपील खारिज की जाती है।” – न्यायमूर्ति विभु बखरु, न्यायमूर्ति तेजस कारिया
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि यदि किसी सेवा प्राप्तकर्ता को विदेशी टेलीकॉम सेवाओं की केवल सुविधा मिलती है, न कि टेक्नोलॉजी या इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कोई अधिकार, तो ऐसे भुगतान को रॉयल्टी नहीं माना जा सकता।
उपस्थिति: श्री रुचिर भाटिया, एसएससी, श्री अनंत मान, जेएससी सुश्री अदिति सभरवाल और श्री अभिषेक आनंद, अपीलकर्ता के अधिवक्ता
केस का शीर्षक: आयकर आयुक्त - अंतर्राष्ट्रीय कराधान -1 बनाम भारती एयरटेल लिमिटेड
केस संख्या: आईटीए 103/2025