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सुप्रीम कोर्ट ने समावेशी ई-केवाईसी मानदंड लागू करने का निर्देश दिया, डिजिटल पहुंच को मौलिक अधिकार माना

30 Apr 2025 2:59 PM - By Shivam Y.

सुप्रीम कोर्ट ने समावेशी ई-केवाईसी मानदंड लागू करने का निर्देश दिया, डिजिटल पहुंच को मौलिक अधिकार माना

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डिजिटल सेवाओं तक पहुंच का अधिकार अब संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक अभिन्न हिस्सा है। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह डिजिटल नो-योर-कस्टमर (eKYC) मानदंडों को इस तरह संशोधित करे जिससे एसिड अटैक पीड़ितों और दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए यह प्रक्रिया सुलभ हो सके।

कोर्ट ने कहा कि आज के डिजिटल युग में शिक्षा, बैंकिंग, शासन और स्वास्थ्य जैसी जरूरी सेवाएं ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से दी जा रही हैं। तकनीकी बाधाओं के कारण विकलांग व्यक्तियों को इन सेवाओं से बाहर रखना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

"संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की व्याख्या अब इन तकनीकी वास्तविकताओं के प्रकाश में की जानी चाहिए," जस्टिस महादेवन ने टिप्पणी की।

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फैसले में कहा गया कि डिजिटल बदलाव समावेशी होना चाहिए, जिसमें विकलांग लोग, ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिक, वरिष्ठ नागरिक और भाषायी अल्पसंख्यक भी शामिल हों। कोर्ट ने कहा कि इन वर्गों को इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल साक्षरता और स्थानीय भाषा में सामग्री की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे वे शासन और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।

"डिजिटल डिवाइड को पाटना अब नीति का विषय नहीं, बल्कि एक संवैधानिक आवश्यकता बन गया है," कोर्ट ने कहा।

यह मामला दो रिट याचिकाओं पर आधारित था – एक एसिड अटैक पीड़िता प्रज्ञा प्रसून द्वारा और दूसरी अमर जैन द्वारा, जो 100% दृष्टिहीन हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वर्तमान eKYC प्रक्रिया में सिर हिलाना, पलक झपकाना या सेल्फी लेना जैसी क्रियाएं जरूरी होती हैं, जो उनके लिए संभव नहीं हैं।

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जस्टिस महादेवन ने कहा कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 और संविधान के तहत इन व्यक्तियों को डिजिटल प्रणालियों तक सुलभता का कानूनी अधिकार है। कोर्ट ने माना कि एसिड अटैक पीड़ितों और दृष्टिहीन व्यक्तियों को eKYC की वैकल्पिक प्रणाली उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

"संवैधानिक और कानूनी प्रावधान याचिकाकर्ताओं को eKYC प्रक्रिया में सुलभता और उचित सुविधा की मांग करने का वैधानिक अधिकार देते हैं," जस्टिस महादेवन ने कहा।

याचिकाओं में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के 2016 के KYC मास्टर दिशानिर्देशों में संशोधन की मांग की गई थी। उन्होंने 'लाइव फोटोग्राफ' की आवश्यकता, माउस या टचस्क्रीन से हस्ताक्षर जैसी प्रक्रियाओं को चुनौती दी, जो विकलांग व्यक्तियों के लिए व्यावहारिक नहीं हैं। OTP की अल्प समय सीमा और दस्तावेजों को स्कैन कर अपलोड करने की जटिलता भी मुद्दा बनी।

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सुप्रीम कोर्ट ने इन समस्याओं को गंभीर माना और eKYC प्रक्रिया को समावेशी बनाने के लिए बीस निर्देश जारी किए हैं। ये निर्देश निर्णय अपलोड होने के बाद सार्वजनिक किए जाएंगे।

अमर जैन की याचिका में कहा गया कि KYC की वर्तमान प्रक्रियाएं उन्हें टेलीकॉम, वित्तीय और सरकारी योजनाओं से वंचित करती हैं। उनकी याचिका को प्रज्ञा प्रसून की याचिका के साथ जोड़ा गया और दोनों को एक साथ सुना गया।

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कोर्ट का यह निर्णय भारत में डिजिटल समावेशन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह राज्य को बाध्य करता है कि वह सभी सरकारी पोर्टल, फिनटेक सेवाएं और ऑनलाइन शिक्षण मंच सभी के लिए सुलभ बनाए।

"राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र केवल सुविधाभोगी वर्ग के लिए नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों के लिए भी समावेशी और सुलभ हो," कोर्ट ने निष्कर्ष दिया।

मामले का विवरण: अमर जैन बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 49/2025 और प्रज्ञा प्रसून बनाम। भारतीय संघ डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 289/2024

उपस्थिति: सिद्धार्थ लूथरा, वरिष्ठ वकील (याचिकाकर्ता) और रमेश बाबू एम. आर., एओआर; अंकुर सूद, एओआर; बृजेन्द्र चाहर, ए.एस.जी.; (प्रतिवादी) [प्रज्ञा की याचिका] और वकील इला शील [अमर की याचिका के लिए]