राजस्थान हाईकोर्ट ने 16 जून 2025 को एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया जो न्यायमूर्ति दिनेश मेहता को राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के खिलाफ दायर की गई थी। मुख्य न्यायाधीश ए.जी. मसीह और न्यायमूर्ति अरुण मोंगा की खंडपीठ ने याचिका को बिना आधार और सार्वजनिक हित से रहित मानते हुए खारिज कर दिया।
"हम पाते हैं कि यह याचिका न तो कानून में और न ही तथ्यों में किसी भी प्रकार से टिकाऊ है," पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा।
जनहित याचिका में न्यायमूर्ति दिनेश मेहता की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए थे। लेकिन कोर्ट ने देखा कि नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत पूरी संवैधानिक प्रक्रिया और कॉलेजियम सिस्टम के माध्यम से की गई थी, जिसमें हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति शामिल होते हैं।
याचिकाकर्ता अंकुर अग्रवाल ने नियुक्ति में पक्षपात और अनियमितताओं का आरोप लगाया था, लेकिन अदालत ने कहा कि उन्होंने कोई ठोस प्रमाण या व्यक्तिगत क्षति प्रस्तुत नहीं की, जो कि PIL के लिए आवश्यक है।
"नियुक्ति प्रक्रिया में न तो कोई कानूनी उल्लंघन है और न ही कोई गैरकानूनी तत्व दिखाया गया है," कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा।
इसके अलावा, पीठ ने कहा कि याचिका का उद्देश्य वास्तविक जनहित नहीं, बल्कि किसी अन्य उद्देश्य की पूर्ति लगता है। उन्होंने PIL के दुरुपयोग के प्रति भी चेतावनी दी।
"जनहित याचिकाएं केवल वास्तविक जनहित के लिए होती हैं, किसी व्यक्ति या न्यायपालिका को निशाना बनाने के लिए नहीं, जब तक कि ठोस आधार न हो," पीठ ने टिप्पणी की।
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फैसले में न्यायिक नियुक्तियों की स्थापित प्रक्रिया को दोहराया गया, जिसमें कॉलेजियम की भूमिका और संवैधानिक प्रक्रिया पर बल दिया गया।
"अनुच्छेद 217 के तहत संवैधानिक तंत्र का पूरी तरह पालन किया गया है," कोर्ट ने दोहराया।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिका में कोई योग्यता नहीं है और इसे प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज किया जाना चाहिए। इसलिए, याचिका को खारिज कर दिया गया और कोई अन्य आदेश पारित नहीं किया गया।
केस का शीर्षक: अंकुर अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य
द्वारा: एडवोकेट आदित्य शर्मा,
Email: adityasharma.as105@gmail.com