मद्रास हाईकोर्ट ने छात्रों में बढ़ती व्यवहारिक समस्याओं को लेकर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इस मुद्दे से निपटने के लिए एक संगठित और समर्पित दृष्टिकोण की तत्काल आवश्यकता है। कोर्ट ने विशेष रूप से पचैयप्पा कॉलेज और प्रेसिडेंसी कॉलेज के छात्रों के बीच बढ़ रही झड़पों का हवाला देते हुए राज्य सरकार को सलाह दी कि एक विशेष समिति का गठन किया जाए। इस समिति में समाजसेवी, विद्वान, मनोविश्लेषक और मानव संसाधन विकास विभाग, उच्च शिक्षा, स्कूली शिक्षा तथा पुलिस विभाग के अधिकारी शामिल किए जाएं।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति ए.डी. जगदीश चंदीरा की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस समय दी, जब प्रेसिडेंसी कॉलेज के छात्र सुंदर की हत्या के मामले में चार आरोपी छात्रों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी। इन छात्रों ने कथित तौर पर यात्रा के दौरान झगड़ा किया था, जो दुखद रूप से सुंदर की मौत में समाप्त हुआ।
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कोर्ट ने कहा, “अपराधी पैदा नहीं होते, बल्कि बनाए जाते हैं। कोई भी माता-पिता यह नहीं चाहते कि उनका बच्चा असामाजिक तत्व बने और समर्पित शिक्षक बच्चों में अच्छे मूल्य और महत्वाकांक्षा विकसित करने का प्रयास करते हैं। समाज भी इस तरह के व्यवहार को सहन नहीं कर सकता। इन समस्याओं की जड़ में सहानुभूति की कमी हो सकती है, न कि हमदर्दी की। संस्थानों को यह सोचकर इन घटनाओं को अनदेखा नहीं करना चाहिए कि यह कैंपस से बाहर हुआ है या केवल कुछ छात्रों तक सीमित है।”
इससे पहले, कोर्ट ने 2 दिसंबर, 2024 को आरोपी छात्रों को जमानत देते हुए एक अनूठी शर्त लगाई थी। शर्त के अनुसार, उन्हें राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल और गवर्नमेंट किलपॉक मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के ट्रॉमा वार्ड में सेवा देनी थी। कोर्ट का मानना था कि इससे वे मानव जीवन के महत्व को समझ सकेंगे और अपने कृत्य पर आत्मचिंतन करेंगे। बाद में दाखिल अनुपालन रिपोर्ट में यह पुष्टि हुई कि छात्रों ने ट्रॉमा केयर स्टाफ की मदद करते हुए काफी कुछ सीखा।
कोर्ट ने आगे कहा, “सभी रिपोर्टों और प्रस्तुतियों का अवलोकन करने के बाद यह स्पष्ट है कि इस गंभीर मुद्दे पर शैक्षणिक प्राधिकरणों को तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। जैसा कि कहावत है — ‘टहनी जिस ओर झुकती है, पेड़ भी उसी दिशा में बढ़ता है।’ कॉलेज स्तर पर त्वरित कार्रवाई जरूरी है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए स्कूल के समय से ही माता-पिता और शिक्षकों के बीच नियमित संवाद के जरिए छात्रों की व्यवहारिक समस्याओं की पहचान और समाधान अनिवार्य है।”
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सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई, जिसमें पिछले एक दशक में छात्रों के खिलाफ दर्ज 231 आपराधिक मामलों का विवरण था। इनमें से 58 मामले पचैयप्पा कॉलेज के और 28 मामले प्रेसिडेंसी कॉलेज के छात्रों से जुड़े थे। यह रिपोर्ट अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने पुलिस महानिदेशक और किलपॉक के उपायुक्त से चर्चा के बाद तैयार की थी, जिसमें यह स्पष्ट हुआ कि यह समस्या लंबे समय से बनी हुई है।
न्यायाधीश ने यह भी रेखांकित किया कि इन मामलों में शामिल कई छात्र ऐसे परिवारों से आते हैं जो आर्थिक या सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। कई बार माता-पिता अकेले बच्चों का पालन-पोषण करते हैं और यह सपना देखते हैं कि उनका बच्चा परिवार का पहला स्नातक बने। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन उम्मीदों के बावजूद छात्र कई बार अपने माता-पिता के बलिदानों को नहीं समझते और गलत संगति या विनाशकारी प्रवृत्तियों की ओर आकर्षित हो जाते हैं।
कोर्ट ने यह भी अफसोस जताया कि चेन्नई के दो प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान — जिनका नाम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन, पूर्व मुख्यमंत्री अरिग्नर सी.एन. अन्नादुरई और नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी.वी. रमन जैसे महान व्यक्तियों से जुड़ा है — अब लगातार हिंसक छात्र झड़पों से जुड़े मामलों में सामने आ रहे हैं।
कोर्ट ने कहा, “संस्थानों की जिम्मेदारी केवल उनके परिसर तक सीमित नहीं हो सकती। छात्रों के व्यवहार का पैटर्न स्कूल और सामाजिक माहौल दोनों का प्रतिबिंब होता है, और अब इन संकेतों को अनदेखा करना संभव नहीं है। इस विषय पर तत्काल और दीर्घकालिक योजना बनानी ही होगी।”
सुनवाई के दौरान स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया और सत्ता पंचायत इयक्कम जैसे एनजीओ ने भी अपने विचार और सुझाव रखे। उन्होंने छात्र प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर बल दिया और भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के उपाय सुझाए।
अंत में, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि छात्रों के कल्याण और उज्ज्वल भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए परिवारों, शैक्षणिक संस्थानों और सरकार का सामूहिक प्रयास आवश्यक है। इसके लिए विशेष समिति के गठन की सिफारिश की गई, जो व्यवहारिक समस्याओं की समय रहते पहचान कर निवारक रणनीतियों को लागू कर सके।
इन निर्देशों के साथ कोर्ट ने 17 अप्रैल, 2025 को याचिकाओं का निपटारा कर दिया।