सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी देश के पास राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्पाईवेयर होना गलत नहीं है। असली चिंता इस बात को लेकर है कि इसका उपयोग किन लोगों के खिलाफ किया गया। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को पेगासस स्पाईवेयर मामले की सुनवाई के दौरान की।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ 2021 में दाखिल उन याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी, जिनमें पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं की इज़रायली स्पाईवेयर पेगासस के जरिए निगरानी के आरोपों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी।
“स्पाईवेयर रखना गलत नहीं है। सवाल है इसका इस्तेमाल किसके खिलाफ हुआ। हम देश की सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकते,” — न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा।
सीनियर एडवोकेट दिनेश द्विवेदी, जो कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने कहा कि इस मामले का मूल मुद्दा यह है कि क्या भारत सरकार के पास पेगासस है और क्या वह इसका उपयोग कर रही है। उन्होंने कहा कि भले ही उनके मुवक्किलों के डिवाइस हैक नहीं हुए हों, लेकिन यदि सरकार के पास यह सॉफ्टवेयर है, तो वह आज भी इसका उपयोग कर सकती है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि “आतंकवादी निजता का दावा नहीं कर सकते।” इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि आम नागरिकों की निजता संविधान के तहत संरक्षित है।
कोर्ट ने मामले को 30 जुलाई 2025 तक के लिए स्थगित कर दिया ताकि याचिकाकर्ता व्हाट्सएप बनाम एनएसओ केस में अमेरिका की अदालत के फैसले को रिकॉर्ड में ला सकें। उस फैसले में यह माना गया है कि व्हाट्सएप को पेगासस के जरिए हैक किया गया और भारत उन देशों में शामिल है जहां यह हुआ।
“अदालत ने पाया कि भारत उन देशों में है जहां हैकिंग हुई,” — सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा, जो पत्रकार परांजॉय गुहा ठाकुरता की ओर से पेश हुए।
सिब्बल ने कहा कि जब 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस रवींद्रन समिति बनाई थी, तब यह स्पष्ट नहीं था कि हैकिंग हुई है या नहीं। लेकिन अब व्हाट्सएप की पुष्टि और अमेरिका के कोर्ट के फैसले से स्थिति स्पष्ट हो चुकी है। उन्होंने आग्रह किया कि समिति की रिपोर्ट प्रभावित व्यक्तियों को साझा की जाए, भले ही संवेदनशील हिस्सों को हटा दिया जाए।
“अब आपके पास व्हाट्सएप का सबूत है,” — सिब्बल ने कहा और संबंधित लोगों को रिपोर्ट का हिस्सा देने की मांग की।
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सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने भी सिब्बल का समर्थन किया, लेकिन कहा कि पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए, क्योंकि हम “ओपन कोर्ट” सिस्टम का पालन करते हैं। इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने आपत्ति जताई और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी उजागर नहीं की जा सकती।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि कोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विवरणों को सार्वजनिक करने की अनुमति नहीं देगा, लेकिन व्यक्तिगत मामलों से जुड़ी जानकारी साझा की जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि जस्टिस रवींद्रन समिति की रिपोर्ट अभी तक सीलबंद है और उन्होंने स्वयं भी उसे नहीं देखा है।
“समिति की रिपोर्ट सीलबंद है, और मैंने भी इसे नहीं देखा,” — न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा।
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याचिकाकर्ताओं में एडवोकेट एमएल शर्मा, पत्रकार एन राम और साशी कुमार, सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास और पांच कथित पेगासस पीड़ित शामिल हैं—परांजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम अब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और इप्सा शाताक्षी।
2021 में सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि केंद्र सरकार मामले में स्पष्ट जानकारी नहीं दे रही है। इसलिए कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र समिति का गठन किया। कोर्ट ने कहा था कि एक निष्पक्ष जांच के लिए स्वतंत्र समिति आवश्यक है।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा की अगुवाई वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा था:
“सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देना राज्य को पूरी छूट नहीं दे सकता। इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह दरकिनार कर दिया जाए।”
2022 में समिति ने सीलबंद रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें पाया गया कि 29 में से 5 डिवाइसेज़ में मैलवेयर था। हालांकि यह स्पष्ट नहीं हुआ कि वह पेगासस ही था या नहीं।
यह मामला 2021 में तब सामने आया था जब द वायर और कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने पेगासस की संभावित निगरानी के तहत फोन नंबरों की लिस्ट प्रकाशित की थी। इसमें राहुल गांधी, प्रशांत किशोर और पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा जैसे नाम शामिल थे।
यह मामला आज भी निजता, प्रेस की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर निगरानी की सीमाओं को लेकर गंभीर सवाल उठाता है।
केस का शीर्षक: मनोहर लाल शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(Crl.) संख्या 314/2021 (और संबंधित मामले)