केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट्स (एफएमजी) से अनिवार्य मेडिकल इंटर्नशिप के लिए शुल्क वसूलने के आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस एन. नागरेश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ही एकमात्र संस्था है जिसे मेडिकल इंटर्नशिप को विनियमित करने का अधिकार है, और राज्य सरकार का यह आदेश एनएमसी के नियमों के खिलाफ है।
"एक बार जब एफएमजी, एफएमजीई पास कर लेते हैं और प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन प्राप्त कर लेते हैं, तो वे भारतीय मेडिकल ग्रेजुएट्स (आईएमजी) के समकक्ष होते हैं और उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता," कोर्ट ने स्पष्ट किया।
याचिकाकर्ता ऐसे एफएमजी थे जिन्होंने रूस, बुल्गारिया, फिलीपींस जैसे देशों से मेडिकल डिग्री प्राप्त की थी और एफएमजीई पास कर प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन प्राप्त करने के बाद केरल के सरकारी अस्पतालों में इंटर्नशिप के लिए आवेदन किया था। लेकिन राज्य सरकार ने 3 अप्रैल 2025 को एक आदेश जारी कर ₹5,000 प्रति माह (कुल ₹60,000 प्रति वर्ष) शुल्क की मांग की, जो भारतीय ग्रेजुएट्स से वसूले जाने वाले शुल्क से अधिक था।
एफएमजी ने इस आदेश को चुनौती दी और कहा कि एनएमसी के 2022 के परिपत्रों में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी मेडिकल कॉलेज को एफएमजी से इंटर्नशिप शुल्क नहीं लेना चाहिए।
"रजिस्ट्रेशन के बाद एफएमजी और आईएमजी के बीच कोई कानूनी भेद नहीं है, इसलिए शुल्क लिया जाना अनुचित और असंवैधानिक है," याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया। उन्होंने यह भी बताया कि शुल्क के बदले में कोई अतिरिक्त प्रशिक्षण, इंफ्रास्ट्रक्चर या स्टाइपेंड नहीं दिया जा रहा था।
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राज्य सरकार ने तर्क दिया कि संविधान के तहत उसे अस्पतालों में आने वाले खर्चों के लिए उचित शुल्क वसूलने का अधिकार है। पहले यह शुल्क ₹10,000 प्रति माह था जिसे बाद में हाईकोर्ट के निर्देश पर ₹5,000 कर दिया गया। सरकार ने कहा कि यह एक नाममात्र शुल्क है जो अस्पताल सेवाओं और प्रशिक्षण को बनाए रखने के लिए जरूरी है।
हालांकि, एनएमसी ने कोर्ट में स्पष्ट कर दिया कि केवल स्टाइपेंड को लेकर राज्यों को निर्णय लेने का अधिकार है, न कि इंटर्नशिप शुल्क लगाने का। एनएमसी की नीति इंटर्नशिप के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क लेने की मनाही करती है।
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कोर्ट ने यह भी देखा कि एक पूर्व मामले (W.P.(C) No.23663/2020) में राज्य सरकार को एनएमसी के दिशा-निर्देशों के अनुसार पुनर्विचार करने को कहा गया था, लेकिन नया आदेश उस पर अमल नहीं करता। कोर्ट ने यह भी पाया कि सरकार द्वारा कोई quid pro quo यानी शुल्क के बदले में कोई प्रतिफल या लाभ नहीं दिया गया।
"जब कोई अतिरिक्त सुविधा या प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा, तो शुल्क लगाया जाना मनमाना और असंवैधानिक है," कोर्ट ने कहा।
अंततः कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि एनएमसी अधिनियम, 2019 मेडिकल शिक्षा को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है और इसके प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार इंटर्नशिप के लिए शुल्क नहीं ले सकती। कोर्ट ने 03.04.2025 को जारी आदेश (GO(Rt) No.987/2025/H&FWD) को गैरकानूनी और एनएमसी अधिनियम के विरुद्ध बताया और रद्द कर दिया।
इस फैसले से एफएमजी के लिए इंटर्नशिप के नियमों में समानता सुनिश्चित हुई है और एनएमसी के अधिकारों की पुष्टि हुई है।
निर्णय तिथि: 3 जून 2025
पीठ: न्यायमूर्ति एन. नागरेश
मामले का शीर्षक: शारूक मोहम्मद और अन्य। बनाम केरल राज्य एवं अन्य एवं अन्य संबद्ध मामले
मामला संख्या: W.P.(C) Nos. 19369, 19383, 19776, 19908, 20000, 20045, 20172, 20195, 20259 of 2025