हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसने अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए याचिका दायर की थी, जबकि उस पर इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस लंबित था। यह मामला मुहम्मद रफसाल बनाम भारत संघ व अन्य (WP(C) No. 2723 of 2025) के रूप में दर्ज था, जिसमें याचिकाकर्ता को पहले 2020 में कतर में दोषी ठहराया गया था।
याचिकाकर्ता ने अदालत का रुख तब किया जब पासपोर्ट प्राधिकरणों ने रेड कॉर्नर नोटिस और केरल में उसके खिलाफ लंबित दो आपराधिक मामलों के आधार पर पासपोर्ट नवीनीकरण से इनकार कर दिया। हालांकि, याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि पिछले चार वर्षों से कतर की एजेंसियों ने भारत से प्रत्यर्पण की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की है।
"सिर्फ रेड कॉर्नर नोटिस की मौजूदगी गिरफ्तारी या अधिकारों से वंचित करने के लिए पर्याप्त नहीं है,"
हाईकोर्ट ने कहा। यह बात भवेश जयंती लाखानी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2009) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर कही गई, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि जब तक प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 के तहत विधिवत प्रक्रिया शुरू नहीं की जाती, तब तक किसी व्यक्ति को भारत से प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता।
केरल हाईकोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि विदेश यात्रा करने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है।
"केवल रेड कॉर्नर नोटिस के आधार पर पासपोर्ट सेवा से इनकार करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है," अदालत ने कहा।
अदालत को यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दो आपराधिक मामले लंबित हैं – एक न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कोर्ट, चालाकुडी में और दूसरा न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कोर्ट–III, नॉर्थ परावूर में। इन मामलों के बावजूद, दोनों अदालतों ने पासपोर्ट नवीनीकरण की अनुमति दी थी—चालाकुडी ने 3 वर्षों के लिए और परावूर ने 5 वर्षों के लिए—इस शर्त पर कि विदेश यात्रा से पहले याचिकाकर्ता को अदालत से अनुमति लेनी होगी।
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सरकार ने रेड कॉर्नर नोटिस और आपराधिक मामलों के आधार पर नवीनीकरण का विरोध किया, लेकिन हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया।
"एक बार जब निचली अदालतों ने पासपोर्ट नवीनीकरण की अनुमति दे दी है, तो अधिकारियों द्वारा उसे रोकने का कोई वैध कारण नहीं है," अदालत ने कहा।
हाईकोर्ट ने पासपोर्ट प्राधिकरण को 3 वर्षों के लिए पासपोर्ट नवीनीकरण करने का निर्देश दिया, जैसा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पहले आदेशित किया गया था।
उद्धरण: "कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कहता हो कि जब अदालत पासपोर्ट नवीनीकरण की अनुमति दे दे तो फिर उसे रोका जा सकता है," अदालत ने स्पष्ट किया।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस. सनल कुमार ने वकीलों टी.जे. सीमा, भावना वेलायुधन, देवरथन एस., और अनु बालकृष्णा नांबियार के साथ पेशी दी। वहीं उत्तरदाताओं की ओर से श्री श्रीलाल वारियर, श्री टी.सी. कृष्णा (वरिष्ठ केंद्र सरकार अधिवक्ता) और श्री सृजित वी.एस. ने पेशी दी।
केस संख्या: WP(C) 2723 of 2025
केस का शीर्षक: मुहम्मद रफसल बनाम भारत संघ और अन्य