एक ऐतिहासिक निर्णय में, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि विकलांग आश्रितों के लिए पारिवारिक पेंशन नियमों की व्याख्या उदार और समावेशी तरीके से की जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नियमों की कठोर या संकीर्ण व्याख्या उन लोगों के साथ अन्याय करेगी जिन्हें समाजिक सुरक्षा की सबसे ज्यादा आवश्यकता है।
“विकलांग व्यक्ति को पारिवारिक पेंशन देने वाले प्रावधानों की संकीर्ण व्याख्या नहीं की जा सकती, जिससे वास्तविक दावेदार बाहर रह जाएं।”
— न्यायमूर्ति संजय धर
यह फैसला श्रीमती बलबीर कौर, एक गंभीर रूप से विकलांग महिला, द्वारा दायर याचिका पर आया है। वह श्री जोगिंदर सिंह की बेटी हैं, जो पहले सेना में कार्यरत थे और बाद में 1971 से 1994 तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम किए। उनके पिता की मृत्यु जून 2010 में हुई थी। जन्मजात बीमारी के कारण 100% विकलांग बलबीर कौर ने आश्रित के रूप में पारिवारिक पेंशन के लिए आवेदन किया था।
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हालांकि उनकी विकलांगता को सेना द्वारा मान्यता दी गई थी और उनके पक्ष में पेंशन स्वीकृत भी की गई थी, फिर भी SBI ने उनके आवेदन को तकनीकी आधारों पर खारिज कर दिया। बैंक का कहना था कि वह 25 वर्ष से अधिक उम्र की थीं, रिकॉर्ड में नाम नहीं था, और उनकी विकलांगता 2009 में घुटने के नीचे की सर्जरी के समय स्पष्ट हुई।
लेकिन कोर्ट ने यह तर्क खारिज कर दिया और माना कि उनकी विकलांगता जन्म से ही मौजूद थी, भले ही वह समय के साथ अधिक गंभीर हुई हो।
“याचिकाकर्ता जन्म से ही असाध्य जन्मजात बीमारी से पीड़ित थीं, जिससे उनकी विकलांगता पहले से ही प्रकट हो चुकी थी।”
— न्यायमूर्ति संजय धर
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कोर्ट ने यह भी कहा कि बैंक के अपने नियमों के अनुसार, यदि कोई संतान “शारीरिक रूप से अक्षम या विकलांग हो और जीवन यापन करने में असमर्थ हो,” और यह स्थिति सेवानिवृत्ति या मृत्यु से पहले प्रकट हो, तो उसे जीवन भर पेंशन मिल सकती है। कोर्ट ने “प्रकट” शब्द की व्यापक और सहानुभूतिपूर्ण व्याख्या की।
“सिर्फ इसलिए कि जन्मजात बीमारी का असर शुरूआती वर्षों में कम था, इसका यह मतलब नहीं कि उस व्यक्ति को पारिवारिक पेंशन से वंचित किया जाए।”
— हाईकोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि पेंशन योजनाओं का उद्देश्य उन लोगों को आर्थिक मदद और सामाजिक सुरक्षा देना है जो अपनी हालत के कारण खुद कमाने में असमर्थ हैं। विकलांग आश्रितों के मामलों में नियमों की संवेदनशील और व्यवहारिक दृष्टिकोण से व्याख्या होनी चाहिए।
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SBI ने यह भी कहा कि बलबीर कौर ने याचिका देरी से दायर की। लेकिन कोर्ट ने बताया कि उन्होंने 2011 में पहली बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, और अंतिम अस्वीकृति पत्र 2020 में आया। यह याचिका 2023 में दायर की गई थी।
“हमें यह समझना होगा कि याचिकाकर्ता पूर्णतः दूसरों पर निर्भर एक विकलांग महिला हैं... ऐसे में उनसे तुरंत कानूनी सलाह लेकर याचिका दाखिल करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती।”
— न्यायमूर्ति संजय धर
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आख़िर में, हाईकोर्ट ने SBI द्वारा जारी अस्वीकृति पत्र रद्द कर दिया और बैंक को आदेश दिया कि वह दो महीने के भीतर पेंशन मंजूर करे।
“दिनांक 23.04.2020 का पत्र रद्द किया जाता है। उत्तरदाताओं को निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ता का पारिवारिक पेंशन मामला नियमों के अनुसार दो महीने के भीतर निपटाएं।”
— हाईकोर्ट का आदेश
मामले का शीर्षक: श्रीमती बलबीर कौर बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया