सुप्रीम कोर्ट ने उन परियोजनाओं को "पूर्व प्रभावी" पर्यावरण मंजूरी (Ex-Post Facto Environmental Clearance - EC) देने के अभ्यास पर रोक लगा दी है, जो बिना पूर्व स्वीकृति के शुरू की गई थीं। 16 मई को जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि केंद्र सरकार भविष्य में पूर्व प्रभावी ईसी देने वाली कोई भी अधिसूचना जारी नहीं कर सकती।
इस फैसले का अर्थ है कि जिन परियोजनाओं ने आवश्यक पर्यावरण मंजूरी प्राप्त किए बिना काम शुरू किया, वे बाद में पोस्ट-फैक्टो मंजूरी के माध्यम से नियमित नहीं की जा सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया:
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"जो लोग बिना पूर्व ईसी प्राप्त किए अवैधता में लिप्त हुए, उनके पक्ष में कोई न्यायसंगतता नहीं है। जिन्होंने बिना ईसी के काम किया, वे अशिक्षित व्यक्ति नहीं थे। वे कंपनियां, रियल एस्टेट डेवलपर्स, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, खनन उद्योग आदि थे। उन्होंने जानबूझकर अवैधताएं कीं।"
अदालत ने आगे कहा कि 2017 की अधिसूचना, 2021 की कार्यालय ज्ञापन (Office Memorandum - OM) और उन सभी सर्कुलरों या आदेशों को "अवैध" और "रद्द" घोषित किया जाता है, जो पूर्व प्रभावी ईसी प्रदान करने के लिए जारी किए गए थे।
केंद्र सरकार द्वारा जुलाई 2021 और जनवरी 2022 में जारी दो कार्यालय ज्ञापनों ने उन परियोजनाओं को पूर्व प्रभावी पर्यावरण मंजूरी दी थी, जिन्होंने पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment - EIA) अधिसूचना, 2006 के तहत आवश्यक पूर्व मंजूरी प्राप्त किए बिना संचालन शुरू कर दिया था। इन ज्ञापनों को अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले द्वारा अमान्य कर दिया गया है।
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यह फैसला वनाशक्ति और अन्य एनजीओ द्वारा दायर याचिकाओं के जवाब में आया, जिन्होंने सरकारी ज्ञापनों में निर्धारित मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) की वैधता को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ईआईए अधिसूचना, 2006 स्पष्ट रूप से "पूर्व पर्यावरण मंजूरी" की आवश्यकता बताती है।
वनाशक्ति ने बताया कि ईआईए अधिसूचना में "पूर्व पर्यावरण मंजूरी" शब्द 34 बार आता है, जो इसके अनिवार्य होने को दर्शाता है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 2021 और 2022 के ज्ञापनों ने इस आवश्यकता का उल्लंघन किया, क्योंकि उन्होंने पूर्व प्रभावी स्वीकृति की प्रक्रिया को मंजूरी दी, जो कानून का उल्लंघन था।
केंद्र सरकार ने 2021 के ज्ञापन का बचाव करते हुए दावा किया कि इसका उद्देश्य उन परियोजनाओं से निपटना था, जिन्होंने बिना पूर्व स्वीकृति के संचालन शुरू कर दिया था, लेकिन इसने पूर्व ईसी की आवश्यकता को कमजोर नहीं किया।
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भारत सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने तर्क दिया कि ऐसी परियोजनाओं को नियमित करने का अवसर न देना विध्वंस और पर्यावरणीय क्षति का कारण बनेगा। उन्होंने 2021 में सुपरटेक ट्विन टावर्स के विध्वंस का उदाहरण दिया।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को दृढ़ता से खारिज कर दिया और कहा कि पूर्व प्रभावी ईसी की अनुमति देना पर्यावरणीय नियमों के मुख्य उद्देश्य को कमजोर करता है।
केस नं. – रिट याचिका संख्या 1394/2023
केस का शीर्षक – वनशक्ति बनाम भारत संघ और इससे जुड़े मामले।