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तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला खारिज किया कहा शिकायतकर्ता पक्ष पीड़ित नहीं

Prince V.
तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला खारिज किया कहा शिकायतकर्ता पक्ष पीड़ित नहीं

1 अगस्त 2025 को तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश पारित करते हुए मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि की कार्यवाही को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति के. लक्ष्मण की एकलपीठ ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि तेलंगाना भाजपा इकाई के पास इस शिकायत को दर्ज करने का कानूनी अधिकार नहीं था और न ही यह साबित हुआ कि वह “पीड़ित पक्ष” है।

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यह मामला भाजपा तेलंगाना के महासचिव कासम वेंकटेश्वरलु द्वारा 10 मई 2024 को दर्ज कराया गया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि 4 मई 2024 को लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान रेवंत रेड्डी ने एक भाषण में भाजपा पर अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और पिछड़ा वर्ग (BC) के आरक्षण को समाप्त करने की योजना बनाने का आरोप लगाया था। यह भाषण विभिन्न मीडिया माध्यमों में प्रसारित हुआ था और भाजपा ने इसे जानबूझकर मतदाताओं को भ्रमित करने की राजनीतिक साजिश बताया।

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शिकायत में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं 120A, 124A, 153, 153A, 153B, 171C, 171G, 499, 505, 511 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत मामला दर्ज किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने भाजपा पदाधिकारियों के बयानों के आधार पर IPC की धारा 499 और RP अधिनियम की धारा 125 के तहत प्रथम दृष्टया मामला मानते हुए 23 अगस्त 2024 को रेवंत रेड्डी को नोटिस जारी किया था।

हालांकि हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि “आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 199 के तहत केवल वही व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है जो वास्तव में पीड़ित हो। तेलंगाना भाजपा इकाई एक स्वतंत्र कानूनी इकाई नहीं है और न ही यह यह प्रमाणित कर सकी कि वह इस मामले में प्रत्यक्ष रूप से अपमानित पक्ष है।”

रेवंत रेड्डी के वकीलों ने तर्क दिया कि भाषण चुनावी माहौल का हिस्सा था और राजनीतिक आलोचना संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत संरक्षित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आती है। उनका कहना था कि यह मामला न तो निजी क्षति से जुड़ा है और न ही यह सिद्ध किया जा सका कि कोई तथ्यात्मक मानहानि हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि IPC की धारा 499 के अंतर्गत मौजूद अपवाद इस मामले में लागू होते हैं।

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रेवंत रेड्डी के वकील ने कहा, “लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रिया का स्वभाव ही विरोधी पक्ष की सार्वजनिक छवि को कम करने के प्रयास से जुड़ा होता है। यदि ऐसी आलोचना को आपराधिक मानहानि माना जाए, तो यह लोकतांत्रिक संवाद को ही समाप्त कर देगा।”

न्यायालय ने कहा कि यद्यपि राजनीतिक दल एक “समूह” के रूप में धारा 499 की व्याख्या 2 के अंतर्गत शिकायत कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए अधिकृत प्रतिनिधि की ओर से वैध प्राधिकरण आवश्यक होता है। इस मामले में न तो तेलंगाना भाजपा इकाई ने राष्ट्रीय भाजपा से कोई अधिकृत दस्तावेज प्रस्तुत किया और न ही यह स्पष्ट किया कि वेंकटेश्वरलु इस समूह के सदस्य हैं या उन्हें आधिकारिक रूप से अधिकृत किया गया है।

न्यायमूर्ति के. लक्ष्मण ने अपने आदेश में कहा कि भाषण में भाजपा का उल्लेख सामान्य रूप से किया गया था, किसी राज्य विशेष की इकाई का नाम नहीं लिया गया। इस कारण से शिकायतकर्ता का मुकदमा दायर करने का कोई वैध अधिकार नहीं बनता।

उन्होंने यह भी टिप्पणी की, राजनीतिक दल संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त संस्थाएं हैं, लेकिन जब किसी राष्ट्रीय पार्टी की ओर से मामला दायर किया जाता है तो उसे उचित अधिकरण के साथ ही दाखिल करना होता है। इस मामले में ऐसा कोई दस्तावेज न्यायालय के समक्ष नहीं प्रस्तुत किया गया।

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कोर्ट ने यह भी पाया कि शिकायतकर्ता द्वारा मौखिक निर्देश मिलने का दावा न तो शिकायत में किया गया और न ही गवाही में इस पर कोई ज़िक्र था। जिरह के दौरान भी यह स्वीकार किया गया कि कोई आधिकारिक अनुमति प्रस्तुत नहीं की गई।

हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि “ऐसी प्रक्रिया, जो कानूनी और प्रक्रियात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण हो, यदि जारी रहे, तो यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

न्यायालय ने कहा, “चुनावी भाषण को केवल इस आधार पर मानहानि कहना कि वह राजनीतिक रूप से आपत्तिजनक है, कानूनी दायरे से बाहर है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने जैसा है।”

सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि यद्यपि न्यायालयों को अपने ‘quashing’ अधिकारों का उपयोग सतर्कता से करना चाहिए, लेकिन जब मामला कानूनी उत्पीड़न का प्रतीत हो, तब दखल उचित है।

अतः हाईकोर्ट ने 23 अगस्त 2024 को हैदराबाद की एक्साइज मामलों की प्रिंसिपल स्पेशल प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा जारी आदेश (C.C. No. 312 of 2024) को रद्द करते हुए पूरी आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया।

राज्य की ओर से अधिवक्ता: पीपी
प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से अधिवक्ता: देवेनेनी विजय कुमार