सड़क सुरक्षा और आपातकालीन प्रतिक्रिया में सुधार के उद्देश्य से भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को कड़े निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को तुरंत सहायता देने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल तैयार करने और उन्हें लागू करने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर गंभीर चिंता जताई और चिकित्सा सहायता व बचाव कार्यों में देरी पर चिंता व्यक्त की।
“एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया है। हमारे देश में सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके कारण अलग-अलग हो सकते हैं। कई मामलों में पीड़ितों को तुरंत स्वास्थ्य सेवा नहीं मिलती,”
— सुप्रीम कोर्ट की पीठ
कोर्ट ने यह भी माना कि कई बार दुर्घटनाओं में पीड़ित घायल नहीं होते, लेकिन वाहन में फंसे रहते हैं। यह स्थिति बताती है कि राज्यों को व्यापक प्रतिक्रिया तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है जो आपातकाल में तुरंत कार्य करे। हालांकि याचिकाकर्ता ने छह प्रकार के प्रोटोकॉल का सुझाव दिया था, कोर्ट ने इस स्तर पर मैंडमस रिट जारी करने से परहेज किया। लेकिन कोर्ट ने इस पर त्वरित कार्यवाही की आवश्यकता को रेखांकित किया।
“हमारा मानना है कि राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल तैयार करने चाहिए, क्योंकि हर राज्य में जमीनी स्थिति अलग हो सकती है,”
— सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
इसी के अनुरूप, सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आदेश दिया है कि वे अगले छह महीनों के भीतर ऐसे प्रोटोकॉल विकसित कर उन्हें लागू करें ताकि दुर्घटना पीड़ितों तक तुरंत मदद पहुंच सके। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्धारित समय के भीतर अपनी रिपोर्ट रिकॉर्ड पर प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं।
“हम इसलिए सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह निर्देश देते हैं कि वे सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों तक तुरंत सहायता पहुंचाने के उद्देश्य से त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए प्रभावी कदम उठाएं। हम राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को उपयुक्त कार्रवाई करने और छह महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का समय प्रदान करते हैं।”
— सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सड़क सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने परिवहन ड्राइवरों की कार्य स्थितियों पर भी ध्यान केंद्रित किया। कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 91 और मोटर परिवहन श्रमिक नियम, 1961 का उल्लेख किया, जिनके तहत ड्राइवरों की दैनिक कार्य अवधि 8 घंटे और साप्ताहिक 48 घंटे निर्धारित की गई है।
“मुद्दा इन प्रावधानों के क्रियान्वयन का है,”
— सुप्रीम कोर्ट ने कहा
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कोर्ट ने चिंता जताई कि इन कानूनी प्रावधानों का अक्सर उल्लंघन होता है, जिससे थकावट से जुड़ी सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। भारत की सड़कों पर दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में ड्राइवरों की थकावट एक बड़ा कारण है।
इस स्थिति को सुधारने के लिए कोर्ट ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) को निर्देश दिया है कि वह सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के परिवहन विभागों के साथ बैठकें आयोजित करे। इन बैठकों का उद्देश्य ड्राइवरों के कार्य घंटे के नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन की रणनीति बनाना है।
“इसलिए हम भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को निर्देश देते हैं कि वह सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के संबंधित विभागों की बैठकें आयोजित करे ताकि ड्राइवरों के कार्य घंटे से संबंधित प्रावधानों को लागू करने के प्रभावी तरीके निकाले जा सकें।”
— सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
कोर्ट ने यह भी कहा कि इन बैठकों में उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंडात्मक प्रावधानों को लागू करने की संभावना पर भी विचार किया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे निवारक उपाय आवश्यक हैं ताकि ड्राइवरों की सुरक्षा से जुड़े नियमों को ठीक से लागू किया जा सके।
“जब तक निवारक उपाय नहीं होंगे, ड्राइवरों के कार्य घंटे से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकेगा,”
— सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वे अगस्त के अंत तक अनुपालन रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपें। इसके बाद मंत्रालय सभी रिपोर्टों को संकलित कर एक विस्तृत रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत करेगा, जिसके आधार पर आगे के निर्देश दिए जाएंगे।