Logo
Court Book - India Code App - Play Store

धारा 498A का एक दुरुपयोग सैकड़ों असली घरेलू हिंसा मामलों को नहीं ढक सकता: सुप्रीम कोर्ट

24 Apr 2025 4:55 PM - By Shivam Y.

धारा 498A का एक दुरुपयोग सैकड़ों असली घरेलू हिंसा मामलों को नहीं ढक सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 84) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी कानून के दुरुपयोग की केवल संभावना मात्र से उसे असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।

“हर एक दुरुपयोग के मामले के पीछे सैकड़ों ऐसे वास्तविक मामले हैं जहां धारा 498A पीड़ितों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण ढाल रही है।”
— सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने माना कि इस कानून के दुरुपयोग को लेकर बढ़ती चर्चा है, लेकिन यह भी कहा कि इसे आधार बनाकर ऐसे कानून को खत्म नहीं किया जा सकता, जो वास्तव में कई पीड़ित महिलाओं को राहत देता है।

“दहेज अब भी एक गहराई तक जड़ें जमाए सामाजिक बुराई है... कई महिलाएं चुपचाप अन्याय सहने को मजबूर हैं।”
— सुप्रीम कोर्ट

Read Also:- सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट की आलोचना की, POCSO मामले में शिक्षक के खिलाफ एफआईआर रद्द करने पर

कोर्ट ने यह भी बताया कि भारत में दहेज की प्रथा अब भी व्यापक रूप से प्रचलित है और कई महिलाएं सामाजिक दबाव, डर या समर्थन की कमी के कारण मामले दर्ज नहीं करातीं। इस कारण धारा 498A जैसे प्रावधान और भी आवश्यक हो जाते हैं।

‘जनश्रुति (पीपल्स वॉयस)’ नामक संस्था द्वारा दायर जनहित याचिका में वैवाहिक मामलों में सभी पक्षों की संतुलित सुरक्षा, और धारा 498A के तहत शिकायत दर्ज करने से पहले अनिवार्य जांच की मांग की गई थी। लेकिन कोर्ट ने कानून की मंशा को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी।

“यह प्रावधान अनुच्छेद 15 के अनुरूप बनाया गया है, जो महिलाओं और कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाने की अनुमति देता है।”
— सुप्रीम कोर्ट

Read Also:- सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस एएम सप्रे द्वारा अस्वीकृत 20 लाख रुपये चाय बागान श्रमिकों की विधवाओं को देने का निर्देश दिया

अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के आधार पर प्रावधान को असंवैधानिक बताने की दलील को कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि यह सकारात्मक भेदभाव के सिद्धांत के तहत लागू किया गया है।

दुरुपयोग के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा:

“दुरुपयोग पर रोक आवश्यक है, लेकिन सिर्फ इसी आधार पर किसी कानून को रद्द नहीं किया जा सकता। ऐसे मामलों की समीक्षा एक-एक करके होनी चाहिए, न कि आम आरोपों के आधार पर।”

अंत में कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान एक संवैधानिक उद्देश्य की पूर्ति करता है और इसे हटाना उन महिलाओं के लिए नुकसानदायक होगा जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।


केस का शीर्षक: जनश्रुति (पीपुल्स वॉयस) बनाम भारत संघ और अन्य, डायरी संख्या 2152-2025

Similar Posts

देश के न्याय का पैमाना सबसे गरीब और हाशिये पर खड़े लोगों की सुरक्षा की भावना में है: जस्टिस सूर्यकांत

देश के न्याय का पैमाना सबसे गरीब और हाशिये पर खड़े लोगों की सुरक्षा की भावना में है: जस्टिस सूर्यकांत

Apr 27, 2025, 1 day ago
सावरकर मानहानि मामले में पुणे कोर्ट ने राहुल गांधी को सावरकर द्वारा लिखी किताबों की प्रतियां लेने की अनुमति दी

सावरकर मानहानि मामले में पुणे कोर्ट ने राहुल गांधी को सावरकर द्वारा लिखी किताबों की प्रतियां लेने की अनुमति दी

Apr 27, 2025, 1 day ago
दिल्ली हाईकोर्ट: CGST अधिनियम की धारा 107(6) के तहत अपील दाखिल करते समय प्री-डिपॉजिट माफ करने का कोई विवेकाधिकार नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट: CGST अधिनियम की धारा 107(6) के तहत अपील दाखिल करते समय प्री-डिपॉजिट माफ करने का कोई विवेकाधिकार नहीं

Apr 24, 2025, 3 days ago
सिर्फ धोखाधड़ी घोषित करना रद्द होने से FIR नहीं होगी रद्द : सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश

सिर्फ धोखाधड़ी घोषित करना रद्द होने से FIR नहीं होगी रद्द : सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश

Apr 26, 2025, 2 days ago
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A के तहत 2018 से अब तक दी गई या अस्वीकृत स्वीकृतियों पर केंद्र से डेटा मांगा सुप्रीम कोर्ट ने

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A के तहत 2018 से अब तक दी गई या अस्वीकृत स्वीकृतियों पर केंद्र से डेटा मांगा सुप्रीम कोर्ट ने

Apr 25, 2025, 3 days ago