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दिल्ली उच्च न्यायालय ने रिश्तेदारों के बीच आपसी समझौते वाले मामले में FIR रद्द की

Shivam Yadav
दिल्ली उच्च न्यायालय ने रिश्तेदारों के बीच आपसी समझौते वाले मामले में FIR रद्द की

7 अगस्त, 2025 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने ओम कांत और अन्य याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज एक एफआईआर को रद्द कर दिया। यह निर्णय तब आया जब संबंधित पक्षों ने आपसी समझौता कर लिया, जिसके बाद शिकायतकर्ता ने अपने आरोप वापस ले लिए।

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मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने समयपुर बादली पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर नंबर 207/2021 को रद्द करने के लिए याचिका दायर की थी। इस एफआईआर में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाने की सजा), 354B (महिला को उसके कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), 509 (महिला की मर्यादा को ठेस पहुंचाने का इरादा रखने वाला शब्द, इशारा या कार्य), और 34 (साझा इरादे से कई लोगों द्वारा किए गए कार्य) के तहत आरोप शामिल थे। एफआईआर रद्द करने का प्रमुख आधार यह था कि शिकायतकर्ता, यानी प्रतिवादी संख्या 2, ने याचिकाकर्ताओं के साथ समझौता कर लिया था।

न्यायालय की कार्यवाही और पक्षों के तर्क

सुनवाई के दौरान, प्रतिवादी संख्या 2 न्यायालय में उपस्थित थी और उसे जांच अधिकारी (IO), एसआई प्रियंका द्वारा पहचाना गया। प्रतिवादी ने पुष्टि की कि उसने याचिकाकर्ताओं के साथ विवाद सुलझा लिया है और अब वह मामला आगे नहीं बढ़ाना चाहती। राज्य की ओर से पेश हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक (APP) ने भी इस समझौते को स्वीकार किया।

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न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने नोट किया कि यह विवाद दो पक्षों के बीच हुई एक घटना से उत्पन्न हुआ था, जिसके कारण क्रॉस एफआईआर दर्ज हुए थे। क्रॉस एफआईआर, नंबर 202/2021, को उसी न्यायालय के एक समकक्ष पीठ ने उसी दिन पहले ही रद्द कर दिया था। न्यायालय को बताया गया कि पक्षकार आपस में रिश्तेदार हैं और उन्होंने अपने मतभेदों को सुलझा लिया है।

जुर्माना लगाया गया

APP ने बताया कि क्रॉस एफआईआर को रद्द करते समय समकक्ष पीठ ने प्रत्येक याचिकाकर्ता पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति (DHCLSC) को जमा करना था। इस प्रकरण को ध्यान में रखते हुए, न्यायमूर्ति काठपालिया ने वर्तमान मामले में भी इसी तरह का जुर्माना लगाना उचित समझा।

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परिस्थितियों का मूल्यांकन करने के बाद, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पक्षकारों को मुकदमे के दौर से गुजरने के लिए मजबूर करना न्याय के हित में नहीं होगा। परिणामस्वरूप, याचिका को स्वीकार कर लिया गया और एफआईआर नंबर 207/2021 तथा इससे उत्पन्न सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया गया। यह आदेश इस शर्त पर दिया गया कि प्रत्येक याचिकाकर्ता एक सप्ताह के भीतर DHCLSC को 5,000 रुपये जमा करेगा।

न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने कहा:
"उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, मैं संतुष्ट हूं कि पक्षकारों को मुकदमे के दौर से गुजरने के लिए मजबूर करना न्याय के हित में नहीं होगा।"

केस का शीर्षक: ओम कांत एवं अन्य बनाम दिल्ली राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) एवं अन्य

केस संख्या: CRL.M.C. 1734/2025 & CRL.M.A. 7782/2025