हाल ही में दिए गए एक फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि लीज डीड में किसी अनुबंध के उल्लंघन पर स्पष्ट कार्रवाई का प्रावधान हो, तो उस अनुबंध की अवहेलना में की गई बंधक कार्रवाई स्वतः शून्य या अमान्य नहीं मानी जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में कार्रवाई का अधिकार पट्टेदार (lessor) के पास होता है और उसे तय प्रक्रिया से लागू करना होता है।
न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर और न्यायमूर्ति एम.एम. साठये की खंडपीठ महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (MIDC) द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका डेट्स रिकवरी अपीलेट ट्रिब्यूनल (DRAT) के उस निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें DRAT ने बेनेलोन इंडस्ट्रीज (Benelon Industries - BI) द्वारा यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (Union Bank of India - UBI) के पक्ष में बनाए गए बंधक को वैध माना था, भले ही वह एमआईडीसी की पूर्व अनुमति के बिना किया गया हो।
कोर्ट ने कहा, “BI द्वारा MIDC के CEO की पूर्व अनुमति के बिना प्लॉट को बंधक बनाना लीज डीड के क्लॉज 2(t) का उल्लंघन था। यद्यपि MIDC ने क्लॉज 4 के अंतर्गत कारण बताओ नोटिस जारी कर अपना अधिकार प्रयोग करने का प्रयास किया, लेकिन उसने आगे कोई कार्रवाई नहीं की। जब लीज डीड में उल्लंघन की स्थिति में विशिष्ट परिणाम निर्धारित हैं, तो उस आधार पर बंधक को अमान्य नहीं माना जा सकता।”
यह मामला मरोल एमआईडीसी क्षेत्र में स्थित प्लॉट नंबर D-9 से जुड़ा है, जो 1979 में MIDC द्वारा बेनेलोन इंडस्ट्रीज को 95 वर्षों की लीज पर आवंटित किया गया था। BI ने प्रारंभ में महाराष्ट्र स्टेट फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन (MSFC) से ऋण लिया था और बाद में No Dues Certificate प्राप्त किया। इसके बाद BI ने यूनियन बैंक से ऋण लेने का प्रयास किया और प्लॉट को बंधक बनाया, परंतु MIDC की पूर्व लिखित अनुमति के बिना।
MIDC ने दावा किया कि यूनियन बैंक ने बिना आवश्यक NOC के वित्तीय सहायता दी और ऋण भुगतान में चूक होने पर बैंक ने डेट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) में वसूली की कार्रवाई शुरू की। DRT द्वारा रिकवरी सर्टिफिकेट जारी किया गया और संपत्ति की नीलामी के माध्यम से कालिंदी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड (KPPL) ने इसे खरीद लिया। MIDC ने इसके विरुद्ध कई आवेदन दायर किए और DRAT में अपील करते हुए बंधक व संपत्ति के हस्तांतरण को शून्य घोषित करने की मांग की।
हालांकि, DRAT ने MIDC की आपत्तियों को खारिज कर दिया और कहा कि यद्यपि बंधक लीज की शर्तों का उल्लंघन करता है, लेकिन यह अमान्य नहीं है क्योंकि लीज डीड में इसके लिए "री-एंट्री" का स्पष्ट प्रावधान है, जिसे MIDC ने लागू नहीं किया। KPPL को वैध खरीदार मानते हुए ट्रिब्यूनल ने संपत्ति के अधिग्रहण को वैध ठहराया।
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MIDC ने सुप्रीम कोर्ट के "State of U.P. vs United Bank of India (2015)" के फैसले का हवाला देकर दलील दी कि बंधक को शून्य माना जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि वह मामला नजूल भूमि से संबंधित था जिसमें विधिक पाबंदियां थीं, जबकि वर्तमान मामले में लीज डीड स्वयं उल्लंघन की स्थिति में समाधान का तरीका बताता है।
कोर्ट ने कहा, “DRAT ने ठीक पाया कि BI ने MIDC की पूर्व अनुमति के बिना बंधक बनाया और MIDC के पास अनुबंध के उल्लंघन पर री-एंट्री का अधिकार था, जिसे उसने नहीं अपनाया।”
MIDC ने KPPL पर सबलेटिंग चार्ज लगाने को भी चुनौती दी, जिसे DRAT ने आंशिक रूप से स्वीकारते हुए कहा कि अगस्त 18, 2007 (जब MIDC ने अवैध उपयोग पाया) से 10 अक्टूबर 2008 (नीलामी तिथि) तक चार्ज लागू होगा, पर उसके बाद के लिए कोई वैधानिक आधार नहीं है।
KPPL ने कोर्ट को बताया कि उसने पूर्व आदेशों के अनुसार सभी आवश्यक भुगतान किए हैं, फिर भी MIDC ने उसके पक्ष में लीज डीड निष्पादित नहीं की और न ही कब्जा सौंपा।
अंत में, कोर्ट ने पाया कि MIDC ने समय पर उचित कानूनी उपाय नहीं अपनाए और अब वह अपनी निष्क्रियता के आधार पर लेनदेन को अमान्य नहीं ठहरा सकता। अतः कोर्ट ने रिट याचिका खारिज करते हुए DRAT का आदेश पूरी तरह से बरकरार रखा।
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कोर्ट ने कहा, “जब लीज में उल्लंघन के लिए उपाय मौजूद हो और उसे लागू न किया जाए, तो केवल उल्लंघन के आधार पर बंधक को अमान्य नहीं ठहराया जा सकता।”
मामले का शीर्षक: Maharashtra Industrial Development Corporation v. Union Bank of India
मामला संख्या: रिट पिटीशन नंबर 1930/2011
निर्णय की तिथि: 26 मई 2025
याचिकाकर्ता के वकील: साहिल महाजन एवं सौरभ एस. गोडबोले
प्रत्युत्तरकर्ता/राज्य के वकील: ए.आई. पटेल एवं एस.पी. कांबले