तमिलनाडु के वन मंत्री के. पोनमुडी के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। यह याचिका एडवोकेट बी. जगन्नाथ ने दायर की है, जिसमें मंत्री को उनके पद से हटाने और अयोग्य घोषित करने की माँग की गई है। आरोप है कि पोनमुडी ने अपने हालिया भाषण में साइवर, वैष्णव परंपरा और महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की थीं।
याचिका में कहा गया है कि अप्रैल 2025 में थंथाई पेरियार द्रविड़ कषगम द्वारा आयोजित एक बैठक में पोनमुडी ने सार्वजनिक मंच से महिलाओं के लिए तमिलनाडु सरकार द्वारा दी जाने वाली मुफ्त बस यात्रा योजना का जिक्र करते हुए महिलाओं को "ओसी" (मुफ्तखोर) कहा।
इसके साथ ही, अपने भाषण के दौरान मंत्री ने एक वेश्या और ग्राहक के बीच की काल्पनिक बातचीत का उदाहरण देते हुए साइवर और वैष्णव परंपराओं में विभूति (पवित्र भस्म) लगाने के तरीके पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी की।
"यह बयान संविधान के मूल्यों और मंत्री पद की शपथ के खिलाफ है," याचिका में कहा गया।
जगन्नाथ ने अदालत को यह भी बताया कि मंत्री के इस बयान के बाद राज्य भर में राजनीतिक स्तर पर भारी विरोध हुआ। इसके चलते पोनमुडी को डीएमके पार्टी ने अस्थायी रूप से उप महासचिव पद से हटा दिया।
यह एक संवैधानिक पद पर बैठे मंत्री द्वारा दिया गया सबसे घृणित, शर्मनाक और आपत्तिजनक बयान है, जिसके लिए कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए," याचिकाकर्ता ने अदालत में कहा।
वकील ने अदालत को यह भी अवगत कराया कि उन्होंने इस मामले में पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई है और मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखकर मंत्री को सभी संवैधानिक पदों से तुरंत हटाने की माँग की है।
जगन्नाथ ने अपने बयान में उस बैठक की भी आलोचना की जिसमें यह भाषण दिया गया। उनका कहना था कि यह कार्यक्रम हिंदू धर्म, विशेष रूप से सनातन धर्म, को बदनाम करने और समाज में नफरत फैलाने के इरादे से आयोजित किया गया था। साथ ही यह भी सवाल उठाया कि क्या इस बैठक के लिए तमिलनाडु पुलिस से उचित अनुमति ली गई थी या फिर इसके पीछे कोई राजनीतिक दखलंदाजी रही।
"संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन में अपने आचरण में गरिमा और संवैधानिक मूल्यों का पालन करना चाहिए," वकील ने अदालत में ज़ोर देते हुए कहा।
याचिका में यह भी दलील दी गई कि संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर नफरत फैलाने की कोई छूट नहीं है। वकील ने आर्टिकल 99 और आर्टिकल 188 का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि को अपने पद की गरिमा बनाए रखते हुए संविधान की रक्षा और देश की सेवा करने की शपथ लेनी होती है।
अंत में जगन्नाथ ने यह भी कहा कि मंत्री के इस बयान से उनके संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। इसी आधार पर उन्होंने अदालत में यह याचिका दायर करने का कानूनी अधिकार होने की बात कही और आवश्यक निर्देश देने की माँग की।
अब इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट आगे की सुनवाई में तय करेगा कि क्या मंत्री के बयान संविधान के उल्लंघन की श्रेणी में आते हैं और क्या उन्हें उनके पद से हटाना न्यायोचित होगा।